एक जनजातीय योद्धा… वीर सीताराम कंवर , जिसके शौर्य की गाथा- श्रीमती गायत्री गोवर्धन सिंह कंवर।

एक जनजातीय योद्धा… वीर सीताराम कंवर , जिसके शौर्य की गाथा- श्रीमती गायत्री गोवर्धन सिंह कंवर।
छत्तीसगढ़/कोरबा नगर पालिका परिषद बांकीमोंगरा उपाध्यक्ष श्रीमती गायत्री गोवर्धन सिंह कंवर ने एक योद्धा वीर सीताराम कंवर जी का जीवनी अपने संदेशों में साझा किया है।
सन 1857, जिस समय पूरे देश का कोना -कोना स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ रहा था। बिल्कुल इसी तरह मध्य में नर्मदा नदी के दक्षिण दिशा की ओर निमाड़ क्षेत्र में कई सारे जनजातीय योद्धा अपने आप को देश की प्रति सर्वस्व न्यौछावर करने में लगे हुए थे। जबकि सन 1857 में जनजातीय क्रांतिकारियों का नाम लिया जाता है,तो उनमें जाख्या नायक और भीमा नायक का नाम अहम रहता है। जिसके बाद इन दोनों क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी
शासन में दखलदांजी की, उनके कामों को चौपट किया। लेकिन आखिर में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के चलते, उन्होंने अपना सर्वस्व देश की प्रति समर्पित कर दिया। जाख्या नायक और भीम नायक के बाद बड़वानी रियासत की बागडोर संभाली , “सीताराम कंवर” ने सन 1857 में वीर क्रांतिकारी सीताराम कंवर को सोल्कर के दरबार में एक अहम जिम्मेदारी दी जाती है। उन्हें होल्कर दरबार का मंडलोई नियुक्त किया जाता है ,जिसके बाद वो वहां से राजस्व की वसूलते हैं। और सुरक्षा के लिए सैनिकों को भी नियुक्त करने की अधिकार होते थे,सन 1857 में नर्मदा नदी के दक्षिण में होल्कर रियासत और बड़वानी रियासत के बीच एक गंभीर युद्ध होता है। इस इलाके में सीताराम कंवर जी ने होल्कर के सिपाहियों को अपनी ओर शामिल कर विद्रोह कर दिया था। सीताराम कंवर के साथ एक मुख्य व्यक्ति के तौर पर रघुराज सिंह मंडलोई भी शामिल होते हैं। जो कि भील- भिलाला समुदाय के जनजातियों की बड़े योद्धा है। इसके चलते ही लगातार सीताराम कंवर सतपुड़ा के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित करते थे। इसी तरह सीताराम ने अलग-अलग जगह पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भी किया । और अंग्रेजी शासन के लिए सिर दर्द बन गए। 27 सितंबर 1858 को गवर्नर जनरल ने मेजर कीटिंग को एक पत्र लिखा। जिसमें जनरल ने लिखा -कि राजाओं और जागीरदारों से कहा जा सकता है कि विद्रोहियों को सख्ती से दमन करें। लेकिन हमारी भारतीय सेना को उकसाया गया है, जिससे अब भारतीय जवानों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।अब हमारे लिए आवश्यक हो गया है कि किसी भी तरह से सीताराम कंवर को सख्ती से रोका जाय। और भारतीय सिपाहियो की कमान खुद संभालें। इस कार्य के लिए गवर्नर जनरल ने एक अर्जेंट मीटिंग बुलाई और मेजर कीटिंग के पास बरन अली को इंदौर भेजा। जैसे ही अंग्रेजी सेना सीताराम कंवर के क्षेत्र में पहुंचती है।उसी बीच गांव के लोग भयभीत हो जाते हैं, और आसपास के पांच गांव पुरी तरह से ख़ाली कर दिए जाते हैं।वंड नामक स्थान जो कि सीताराम कंवर की जन्म स्थली है। जिसे अंग्रेज चारों तरफ से घेर लेते हैं और एक के बाद एक वहां के लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया जाता है। पुरे क्षेत्र को चारों तरफ से घेर लिया जाता है। उस मौके का फायदा उठाते हुए अंग्रेजों ने हमला बोल दिया, दोनों तरफ से अस्त्र-शस्त्र चलाए जाते हैं। दोनों तरफ से हमले किए जाते हैं, लेकिन अंग्रेजों का मुकाबला करने जनजातीय समाज के पास उतना बल नहीं होता। जनजातीय समाज तब तक अपने पारम्परिक अस्त्र शस्त्रों का उपयोग करती थी ,जिसके बाद अंग्रेजों ने जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के ऊपर पर हमला बोल दिया। और उन्हें हार का सामना करना पड़ा , इस युद्ध से विद्रोहियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। और उनके कई लोग जंगल की ओर भाग गये , जिस समय युद्ध चल रहा था।उस समय भी सीताराम कंवर ने सभी से यही कहा-हम जो कुछ कर रहे हैं, पेशवा के लिए कर रहे हैं। और इस स्वतंत्रता संग्राम में लगभग बीस लोग वीरगति को प्राप्त हो गये। इन क्रांतिकारियों में वीर सीताराम कंवर भी शामिल थे, साथ ही लगभग 80 लोगों को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया। उनमें से कई लोगों को फांसी, तो कई लोगों को तोप के आगे बांध कर मार दिया गया। संग्राम के बाद वीर सीताराम कंवर को सिर अंग्रेजी कैम्प पर लाया गया। जहां पर इस बात कि पुष्टि की गई कि सीताराम कंवर जिसके ऊपर लगभग पांच सौ रूपए से ज्यादा का इनाम था। उसे अंग्रेजी शासकों ने मार गिराया है, यह पुरे विद्रोह सीताराम कंवर ने किसी प्रकार की धन-दौलत, राज-पाट पाने के लिए नहीं किया था। बल्कि अपने लोगों की स्वतंत्रता पाने के लिए किया था। वो ये चाहते थे कि देश का जनजाती तयय समाज कभी भी अंग्रेजों के सामने न झुके, और उनका डटकर मुकाबला करें।वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सीताराम कंवर ने कभी अंग्रेजो की हुकूमत स्वीकार नहीं की। ऐसे में वीर क्रांतिकारी को लगातार हमेशाआज तक याद किए जाता है , एक खास बात यह भी है कि आज तक सीताराम कंवर को गोड़वाना सम्राज्य में भी याद किया जाता है। पूजा जाता है। अब आप कहेंगे कि सीताराम कंवर तो बड़वानी रियासत के थे, फिर उन्होंने गोड़वाना सम्राज्य में इतना सम्मान क्यों मिलता है। तो असल में गोड़वाना सम्राज्य के पूर्व शासक शंकर शाह और रघुनाथ शाह के वो सबसे खास व्यक्ति माने जाते थे। इसी के साथ शंकर शाह और रघुनाथ शाह के गुप्त चर सेना के प्रमुख भी थे। जिसके चलते आज भी गोड़वाना क्षेत्र में वीर क्रांतिकारी सीताराम कंवर को पूजा जाता है। अंततः विद्रोह का दमन करने के लिए कीटिंग स्वयं गया और अंग्रेजी सेना के साथ विद्रोहियों की पीजागढ़ किले के पास मुठभेड़ हुई। अपने अटूट आत्मविश्वास के साथ सीताराम कंवर ने वीरता का परिचय दिया और लड़ते रहे। ऐसे वीर क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को कोटि-कोटि नमन- श्रीमती गायत्री गोवर्धन सिंह कंवर – उपाध्यक्ष नगर पालिका परिषद बांकीमोंगरा जिला कोरबा छत्तीसगढ़।