कटघोरा में ‘हाथी-मानव संघर्ष नियंत्रण टीम’ गठित, पत्रकार शशिकांत डिक्सेना (निक्की) और हाथी विशेषज्ञ प्रभात दुबे को मिली अहम जिम्मेदारी।

0
IMG_20251011_200250.jpg

कटघोरा में ‘हाथी-मानव संघर्ष नियंत्रण टीम’ गठित, पत्रकार शशिकांत डिक्सेना (निक्की) और हाथी विशेषज्ञ प्रभात दुबे को मिली अहम जिम्मेदारी

छत्तीसगढ़/कोरबा। कटघोरा वनमंडल क्षेत्र में बढ़ते मानव-हाथी संघर्ष (HEC) की घटनाओं को रोकने के लिए वनमंडलाधिकारी कुमार निशांत (भा.व.से.) ने एक विशेष ‘Spearhead (Rapid Response) Team’ का गठन किया है। यह दल संघर्ष की स्थिति में तुरंत मौके पर पहुंचकर राहत, बचाव और समन्वय की जिम्मेदारी निभाएगा। इस टीम में विभागीय अधिकारियों के साथ पत्रकार, विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल किए गए हैं।
जारी आदेश के अनुसार, दल की कमान उपवनमंडलाधिकारी संजय त्रिपाठी को दी गई है, जबकि टीम में 15 सदस्य रखे गए हैं जिनमें परिक्षेत्र अधिकारी, सहायक, रक्षक, पशुचिकित्सक, पत्रकार और हाथी मित्रदल के सदस्य शामिल हैं।

शशिकांत डिक्सेना (निक्की) — पत्रकार जो जोखिम उठाकर करते हैं सच्ची रिपोर्टिंग

कटघोरा के चर्चित पत्रकार शशिकांत डिक्सेना (निक्की) को इस दल में शामिल किया गया है, जो लंबे समय से जंगलों और वन्यजीव से जुड़े जमीनी मुद्दों पर निडर होकर रिपोर्टिंग करते रहे हैं। निक्की ने कई बार जान जोखिम में डालकर हाथी मूवमेंट, ग्रामीणों की परेशानी और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है।
वे न केवल घटनास्थल से समय पर जानकारी जुटाकर विभागीय अधिकारियों को सचेत करते हैं, बल्कि ग्रामीणों के हितों के लिए लगातार आवाज उठाते हैं। ग्रामीणों और वन विभाग के बीच सेतु बनकर उन्होंने कई बार संघर्ष की स्थितियों को टलने में अहम भूमिका निभाई है।

प्रभात दुबे — लोगों को जागरूक कर रहे, टकराव घटाने की मुहिम में आगे

हाथी विशेषज्ञ प्रभात दुबे को भी इस टीम में सदस्य बनाया गया है। वे पिछले कई वर्षों से गांव-गांव जाकर लोगों को हाथियों के व्यवहार, उनकी गतिविधियों और सुरक्षा के उपायों के बारे में समझा रहे हैं। प्रभात दुबे की मुहिम का असर यह है कि अब कई ग्रामीण क्षेत्र में लोग हाथियों के आगमन पर घबराने की बजाय सावधानीपूर्वक दूरी बनाते हैं, जिससे मानव-हाथी संघर्ष में उल्लेखनीय कमी आई है।

वन विभाग का मानवीय प्रयास

वनमंडलाधिकारी कटघोरा कुमार निशांत ने आदेश में कहा है कि यह दल किसी भी संघर्ष की सूचना पर तुरंत मौके पर पहुंचेगा, घायलों को सुरक्षित करेगा और हाथियों को बिना नुकसान पहुंचाए सुरक्षित दिशा में मोड़ेगा। साथ ही, प्रत्येक घटना की फोटो-वीडियो व GPS लोकेशन सहित रिपोर्ट तैयार की जाएगी और मुआवजा प्रकरणों को प्राथमिकता से निपटाया जाएगा।
दल के सदस्यों को समुदाय से संवाद, भीड़ नियंत्रण, जनजागरूकता और ग्रामीणों को प्रशिक्षण देने का दायित्व भी सौंपा गया है।

कटघोरा मॉडल बन सकता है उदाहरण
पत्रकारों, विशेषज्ञों और विभागीय अधिकारियों की यह संयुक्त पहल न केवल संघर्ष की घटनाओं को कम करेगी बल्कि एक संवेदनशील और सहभागी प्रशासनिक मॉडल के रूप में उभर सकती है। ग्रामीण भी इसे स्वागत योग्य कदम बता रहे हैं, क्योंकि इसमें उन लोगों को जोड़ा गया है जो वास्तव में मैदान पर सक्रिय और विश्वसनीय हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed